सोरायसिस (Psoriasis) Skin disorders in Ayurveda
सोरायसिस (Psoriasis)
आयुर्वेद में सोरायसिस (Psoriasis) को त्वचा संबंधी विकारों में शामिल किया जाता है और इसे "किटिभ कुष्ठ" या "एक्कुष्ठ" के नाम से जाना जाता है। यह एक पुरानी त्वचा रोग है जिसमें त्वचा पर लाल चकत्ते, खुजली, सूजन और शुष्क, मोटी त्वचा की परतें बन जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस मुख्यतः दोषों (वात, पित्त और कफ) के असंतुलन के कारण होता है।
कारण (आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से)
1. असात्म्य आहार-विहार: जैसे अत्यधिक तले-भुने, मसालेदार, और विषम आहार का सेवन।
2. मनोवैज्ञानिक कारण: तनाव, चिंता और गुस्से का बढ़ना।
3. विहार दोष: अनुचित दिनचर्या, देर रात तक जागना, और व्यायाम की कमी।
4. वात-पित्त असंतुलन: वात और पित्त दोष त्वचा को प्रभावित कर सोरायसिस का कारण बनते हैं।
आयुर्वेदिक उपचार
1. पंचकर्म: शरीर को शुद्ध करने और दोषों के संतुलन के लिए पंचकर्म चिकित्सा विशेष रूप से उपयोगी है।
वमन: शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालना।
विरेचन: आंतों की सफाई।
बस्ती: औषधीय एनिमा के माध्यम से दोषों का संतुलन।
रक्तमोक्षण: रक्त को शुद्ध करना।
2. औषधियां:
कुटकी (Picrorhiza kurroa): पाचन में सुधार और पित्त दोष को संतुलित करने के लिए।
निम्ब (Neem): त्वचा को साफ करने और सूजन कम करने के लिए।
मंजिष्ठा (Rubia cordifolia): रक्त शुद्धि के लिए।
हरिद्रा (हल्दी): सूजन और खुजली कम करने के लिए।
त्रिफला: पाचन सुधारने और शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालने के लिए।
3. आहार एवं जीवनशैली:
ताजा, हल्का, और सुपाच्य भोजन करें।
तैलीय, मसालेदार, और भारी भोजन से बचें।
हाइड्रेटेड रहें और तनाव कम करें।
योग और प्राणायाम जैसे शीतली और अनुलोम-विलोम का अभ्यास करें।
4. बाह्य उपचार:
नारियल तेल और एलोवेरा जेल का प्रयोग त्वचा की नमी बनाए रखने के लिए।
नीम का तेल त्वचा संक्रमण को कम करने में मदद करता है।
आयुर्वेदिक लेप जैसे चंदन, मंजिष्ठा और हल्दी का उपयोग।
सुझाव
आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेकर व्यक्तिगत प्रकृति (प्रकृति) और दोषों के असंतुलन के अनुसार उपचार करें।
सोरायसिस को ठीक होने में समय लग सकता है, इसलिए धैर्य और नियमितता बनाए रखें।
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