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आचार्य चरक प्राचीन भारतीय चिकित्सा शास्त्र के महान विद्वान और आयुर्वेद के स्तंभों में से एक माने जाते हैं।

 आचार्य चरक प्राचीन भारतीय चिकित्सा शास्त्र के महान विद्वान और आयुर्वेद के स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह न केवल प्राचीन भारत के लिए बल्कि समस्त मानवता के लिए अत्यंत मूल्यवान है। आइए, उनके जीवन और कार्यों को विस्तार से समझते हैं: 1. **चरक का जीवन और परिचय**: आचार्य चरक का समय लगभग 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच माना जाता है। उनके जीवन के बारे में सटीक ऐतिहासिक जानकारी नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि वे भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला से जुड़े थे, जो उस समय चिकित्सा विज्ञान का प्रमुख केंद्र था। चरक का योगदान विशेष रूप से आयुर्वेद की काय चिकित्सा (आंतरिक चिकित्सा) शाखा में है, जो शरीर के भीतर होने वाले विकारों और उनके उपचार पर केंद्रित है। 2. **चरक संहिता**: आचार्य चरक का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ "चरक संहिता" है, जिसे आयुर्वेद का आधार ग्रंथ माना जाता है। चरक संहिता एक विस्तृत चिकित्सा पाठ है, जिसमें शरीर रचना, रोगों का निदान, उनके कारण, और उपचार के बारे में जानकारी दी गई है। यह ग्रंथ आठ खंडों (स्थानों) में विभाजित ह...

Health Tips of ayurvedic knowledge,

 ✍️कायाकल्प विचार✍️ प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य सुझाव ANCIENT INDIAN HEALTH TIPS. *1. अजीर्णे भोजनं विषम् ।*  यदि दोपहर में लिया गया भोजन पच नहीं पाया है, तो रात का खाना जहर के समान होगा। भूख एक संकेत है कि पिछला भोजन पच गया है। If previously taken Lunch is not digested..taking Dinner will be equivalent to taking Poison. Hunger is one signal that the previous food is digested  *2. अर्धरोगहरी निद्रा ।* उचित नींद आधी बीमारियों को दूर करती है। Proper sleep cures half of the diseases.. *3 मुद्गदाली गदव्याली ।* सभी दालों में से, मूंग दाल सबसे अच्छी है। यह प्रतिरक्षा को बढ़ाती है। अन्य सभी दालों के एक या दूसरे दुष्प्रभाव होते हैं। Of all the Pulses, Green grams are the best. It boosts Immunity. Other Pulses all have one or the other side effects.  *4. भग्नास्थि-संधानकरो लशुनः।* लहसुन टूटे हुए हड्डियों को भी जोड़ देता है। Garlic even joins broken Bones..  *5. अति सर्वत्र वर्जयेत्।* केवल स्वादिष्ट होने के कारण अधिक मात्रा में कुछ भी सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। सं...

Dengue fever

  Symptoms  Requires a medical diagnosis Symptoms include high fever, headache, rash and muscle and joint pain. It may also cause nausea and vomiting. In severe cases there is serious bleeding and shock, which can be life threatening. दो चार बहुत अच्छी बातें जो डेंगू रोग निवारण के परिपेक्ष्य में  पाया गया है share करना चाहता हूँ डेंगू का treatment और platelets count क्या ये दोनों अलग-अलग बात है ? या एक ही है ? Allopathy के लिए ये बिल्कुल अलग-अलग विषय है हमारे लिए भी अलग हो सकते है लेकिन आयुर्वेद में ये अलग-अलग विषय बिल्कुल नहीं है जेसा हम सभी जानते है सामान्यतः रक्त धातु का मल "पित्त" है ज्वर में "पित्त" ही मुख्य कारक है षड् रस के aspect में देंखे तो पित्त अम्ल, लवण व कटु रस से बढता है और मधुर, तिक्त कषाय से balance होता है हमें मल को नहीं बढने देना है ज्यादा मल उत्पन्न होगा तो उत्तरोतर धातु और समकक्ष धातु दोनों में गिरावट आएगी मतलब पित्त को नहीं बढने देना है मतलब अम्ल लवण कटु रसो से परहेज रखना है इसलिए यदि डेंगू में platelets count को बढ़ाना है तो मधुर तिक्त कषाय रस...

Knowledge of the Ayurveda ❤️🙏

 सारे शरीर में दर्द ,अकडन ,कमर ,जोड़ों से दर्द ,चलना फिरना कष्टकारी होने में  ➖सुबह शाम महायोगराज गुग्गुल 1-1 ,महारास्नादि क्वाथ 2--2 चम्मच ,वृहत वातचिंतामणि रस 1--1 गोली लें।  ➖भोजन के बाद अश्वगंधारिस्ट ,मालिश हेतु महानारायण तेल मालिश। 👉👉👉👉👉👉👉 घुटनों में तकलीफ? ➖योगराज गुग्गुल +विषमुष्टि 1-1 गोली दिन में 3 बार लें।  ➖असगंध चूर्ण 60 ग्राम +शुन्ठी चूर्ण 30 ग्राम +शतावर चूर्ण 30 ग्राम +प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम ---60 पुड़िया बनाएं ,1--1 पुड़िया दिन में 2 बार दूध से लें।  ➖चंद्रप्रभा वटी 1--1 गोली दिन में 2 बार दूध से लें। ➖सूजन हो तो---पुननर्वदि गुग्गुल 1-1 गोली दिन में 3 बार लें।  ➖कब्ज हो तो पंचसकार चूर्ण 5 ग्राम रात को गर्म पानी से या गर्म दूध से ,दहीं ,बर्फ ना लें।

Our Ayurveda

 🧐क्या आप जानते हैं पित्ताशय की थैली या गॉलब्लैडर की खराबी उच्च कोलेस्ट्रॉल, विटामिन डी की कमी और हार्मोनल असंतुलन का कारण हो सकती है ??  🤔पित्ताशय की थैली क्या है और यह क्या करती है ??  🌺गॉल ब्लैडर एक छोटा नाशपाती के आकार का अंग है जो पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में लीवर के नीचे स्थित होता है।☘️ 🌺पित्ताशय की थैली पित्त को जमा करती है जो यकृत से स्रावित होती है। पित्ताशय की थैली भोजन को पचाने के लिए इस पित्त को ग्रहणी में छोड़ती है। ☘️  🌺पित्त या बाइल का उपयोग वसायुक्त भोजन, वसा में घुलनशील विटामिन जैसे ए, डी, ई, के और खनिजों के पाचन और अवशोषण के लिए किया जाता है।☘️  🌺अधिकतर पित्ताशय की थैली को हृदय और गुर्दे जैसे महत्वपूर्ण अंग के रूप में नहीं देखा जाता है लेकिन यह शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। ☘️ 🤔यदि पित्ताशय की थैली ठीक से काम न करे तो क्या होगा?  🌻यदि पित्ताशय की थैली पित्त नहीं छोड़ती है या विभिन्न कारणों से पित्त गाढ़ा हो जाता है तो यह निम्नलिखित स्थितियों का कारण बनता है 👉विटामिन डी की कमी।  👉उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर । 👉एसिड रिफ्...

Ayurveda

 भारत में लगभग 4 हजार वर्षों से नीम (संस्‍कृत नाम: निम्‍ब या अरिष्‍टा) का प्रयोग किया जा रहा है। नीम को औषधीय जड़ी बूटी के रूप में भी जाना जाता है। नीम के पेड़ के सभी हिस्‍सों के विभिन्‍न तरीकों से लाभकारी होते हैं। यहां तक कि नीम को संस्‍कृत में अरिष्‍टा कहा जाता है जिसका अर्थ “बीमारी से राहत पाना” है। नीम का पेड़ पत्तेदार होता है और से 75 फीट की लंबाई तक बढ़ सकता है। आमतौर पर नीम को पेड़ उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। हालांकि, इसे ईरान के दक्षिणी द्वीपों पर भी देखा जा सकता है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार विकासशील देशों के लगभग 80 फीसदी लोग पारंपरिक दवा के रूप में पौधों और पौधों से बनी चीज़ों का इस्‍तेमाल करते हैं। नीम का पेड़ त्‍वचा संक्रमण, घावों, संक्रमित जलन और कुछ फंगल इंफेक्‍शन जैसी कई समस्‍याओं को दूर करने में मदद करता है। नीम के तेल से कई तरह के साबुन, लोशन और शैंपू तैयार किए जाते हैं। नीम की पत्तियां मच्‍छरों को भगाने में भी बहुत असरकारी होती हैं। इससे लिवर के कार्य करने की क्षमता में सुधार आता है और ब्‍लड शुगर का स्‍तर संतुलित रहता है।...