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जिंक (Zn) /एंजाइम की संरचना/शरीर में संतुलित मात्रा में जिंक zinc usse in Ayurveda

  जिंक (Zn) एक कोफैक्टर (cofactor) के रूप में एंजाइमों के साथ काम करता है, जो उनके कार्यों को सक्रिय और नियंत्रित करता है। यह विभिन्न एंजाइमों की क्रियाओं में सहायता करता है, जिनका शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यहाँ बताया गया है कि जिंक कैसे एंजाइमों की मदद करता है: 1. एंजाइम की संरचना को स्थिर बनाना: जिंक एंजाइम की संरचना को स्थिर और कार्यशील बनाए रखने में मदद करता है। यह एंजाइम को सही आकार में बनाए रखता है ताकि वे अपने कार्यों को कुशलतापूर्वक कर सकें। 2. एंजाइम की सक्रियता बढ़ाना: जिंक एंजाइम के सक्रिय केंद्र (active site) में उपस्थित होकर रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज करता है। यह सब्सट्रेट (substrate) को एंजाइम से सही ढंग से जुड़ने में मदद करता है। 3. विशेष एंजाइमों के साथ कार्य: जिंक कई महत्वपूर्ण एंजाइमों की क्रिया में सहायक होता है: कार्बोनिक एनहाइड्रेज (Carbonic Anhydrase): यह एंजाइम कार्बन डाइऑक्साइड और पानी को बाइकार्बोनेट में परिवर्तित करता है, जो शरीर के एसिड-बेस बैलेंस को बनाए रखता है। डीएनए और आरएनए पॉलीमरेज़: ये एंजाइम डीएनए और आरएनए के संश्लेषण के लिए आवश्यक है...

सोरायसिस (Psoriasis) Skin disorders in Ayurveda

                      सोरायसिस (Psoriasis ) आयुर्वेद में सोरायसिस (Psoriasis) को त्वचा संबंधी विकारों में शामिल किया जाता है और इसे "किटिभ कुष्ठ" या "एक्कुष्ठ" के नाम से जाना जाता है। यह एक पुरानी त्वचा रोग है जिसमें त्वचा पर लाल चकत्ते, खुजली, सूजन और शुष्क, मोटी त्वचा की परतें बन जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस मुख्यतः दोषों (वात, पित्त और कफ) के असंतुलन के कारण होता है। कारण (आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से) 1. असात्म्य आहार-विहार: जैसे अत्यधिक तले-भुने, मसालेदार, और विषम आहार का सेवन। 2. मनोवैज्ञानिक कारण: तनाव, चिंता और गुस्से का बढ़ना। 3. विहार दोष: अनुचित दिनचर्या, देर रात तक जागना, और व्यायाम की कमी। 4. वात-पित्त असंतुलन: वात और पित्त दोष त्वचा को प्रभावित कर सोरायसिस का कारण बनते हैं। आयुर्वेदिक उपचार 1. पंचकर्म: शरीर को शुद्ध करने और दोषों के संतुलन के लिए पंचकर्म चिकित्सा विशेष रूप से उपयोगी है। वमन: शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालना। विरेचन: आंतों की सफाई। बस्ती: औषधीय एनिमा के माध्यम से दोषों का संतुलन। रक्तमोक्षण: रक्...

शरीर के वेग और उनसे उत्पन्न रोग/body movements and the diseases caused by them

                  शरीर के वेग और उनसे उत्पन्न रोग   शरीर के १३ वेग ऐसे है जिसे रोकने से भारी शारीरिक और    मानसिक परेशानी हो सकती है:   1•🌳साँस(breath) - साँस बन्द तो प्राण निकले। साँस जितना संभव गहरी उतनी तेज़ लेनी चाहिए जितना शरीर की माँग हो।    2•🌳 मूत्र(urine) - इसको रोकने सबसे बड़ा नुक़सान है मुत्र थैली में सक्रंमण होना का ख़तरा। लिंगेन्द्रियो मे दर्द होता है, मूत्र रुक रुक कर और कष्ट से होता है, सिर मे पीड़ा होतीं है, शरीर सीधा नहीं होता है, पेट मे आफरा तथा जांघोँ के जोड़ो मे शूल से चलतें है। आंखें की रोशनी कमजोर होती है।  3•🌳 पाखाना(toilet) - मल रूकने से गैस बनती है और गैंस से पेट फूल जाता है। पाखाना य मल के वेग रोक्ने से पेट मे गड़गड़ाहट और दर्द होता है, मल साफ़ नही होती है, डकारे आती है, ये लक्षण मध्वाचार्य ने लिखे है। मष्तिक में दर्द होता है।  4•🌳निन्द्रा(sleep) - इसके वेग को रोकने से जम्भाई, अंग टूटना, नेत्र और मस्तक का जङ हो जाना और तन्द्रा ये रोग होते है। निन्द्रा को रोकने से प्रतिरोधात्मक ...

मानव मेटान्यूमोवायरस (HMPV) और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण(Human Metapneumovirus (HMPV) and the Ayurvedic Approach)

मानव मेटान्यूमोवायरस (HMPV) और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण मानव मेटान्यूमोवायरस (Human Metapneumovirus या HMPV) एक श्वसन संक्रमण है जो फेफड़ों और श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। यह वायरस मुख्य रूप से बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को प्रभावित करता है। यह फ्लू और सामान्य सर्दी-जुकाम के समान लक्षण उत्पन्न करता है। HMPV के लक्षण •खांसी और गले में खराश •बुखार •नाक बहना या बंद होना •थकान और कमजोरी •गंभीर मामलों में निमोनिया या ब्रोंकाइटिस संक्रमण के कारण HMPV एक अत्यधिक संक्रामक वायरस है जो संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने से हवा के माध्यम से फैलता है। यह दूषित सतहों को छूने के बाद आंख, नाक या मुंह को छूने से भी फैल सकता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से HMPV का प्रबंधन आयुर्वेद के अनुसार, इस प्रकार के संक्रमण कफ और वात दोष के असंतुलन के कारण होते हैं। आयुर्वेदिक उपचार प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और शरीर के दोषों को संतुलित करने पर केंद्रित होता है। आयुर्वेदिक उपचार और उपाय 1. आयुर्वेदिक औषधियाँ • त्रिकटु चूर्ण (सौंठ, काली मिर्च और पिपली) – यह कफ को कम करने में मदद ...

हठ योग प्रदीपिका(Hatha Yoga Pradipika)

                        *हठ योग प्रदीपिका*  *अध्याय 3ए - मुद्रा (1-60 श्लोक)* 1. जैसे सर्पों का सरदार पृथ्वी को सहारा देता है, वैसे ही कुण्डलिनी योग-तंत्र को सहारा देती है । 2. जिस प्रकार गुरु की कृपा से सुप्त कुण्डलिनी जागृत हो जाती है, वह छह कमलों और गांठों को भेद देती है। 3. प्राण राजपथ पर शून्यपदवी (शून्य स्थिति) की ओर चला जाता है , मनुष्य तर्क और मृत्यु के भ्रम से मुक्त हो जाता है। 4. सुषुम्ना, सूर्यपदवी (शून्य की स्थिति), ब्रह्मरंद्र (ब्रह्म में प्रवेश) , महापथ (मुख्य मार्ग) , स्मशान ( श्मशान भूमि) , शांभवी, मध्यमार्ग (मध्य मार्ग) एक ही बात को संदर्भित करते हैं। 5. इसलिए, व्यक्ति को शक्तिशाली देवी (कुंडलिनी) को जागृत करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, मुद्राओं का अच्छे से अभ्यास करना चाहिए। 6. महामुद्रा, महाबंध, महावेध, केचरी, उड्डियाना, मूलबंध और जालंधर बंध। 7. विपरीतकरणी, वज्रोली और शक्तिकलाना; ये दस मुद्राएं हैं जो बुढ़ापे और मृत्यु का नाश करती हैं। 8. इन्हें सबसे पहले आदिनाथ ने सिखाया था और ये साधक को आठ सिद्...

शिलाजीत के फायदे और नुकसान(Benefits and Side Effects of Shilajit)

                  शिलाजीत के फायदे और नुकसान   शिलाजीत का स्वाद  शिलाजीत स्वाद में कसैल, गर्म और ज्यादा कडवा होता है। इसमें से गोमूत्र की तरह की गंध आती है।  शिलाजीत के प्रकार यह चार प्रकार का होता है।  स्वर्ण। रजत। लौह और ताम्र। शिलाजीत के लाभ यौन तकात   शिलाजीत का सबसे पहला और अहम फायदा यह है कि यह पुरूषों की यौन क्षमता को बढ़ाता है। साथ ही यह शीध्रपतन को भी रोकता है।  शिलाजीत वीर्य को भी बढ़ाता है। शिलाजीत का सेवन करते हुए आपको मिर्च मसाले, खटाई और अधिक नमक के सेवन से परहेज करना है। स्वपनदोष की समस्या शिलाजीत में केसर, लौहभस्म और अम्बर को मिलाकर सेवन करने से स्पनदोष ठीक हो जाता है। और पुरूष की इंद्री यौन इच्छा के लिए प्रबल हो जाती है। यह उपाय करते समय भी अधिक खटाई और मिर्च मसालों के सेवन से बचें। तनाव की समस्या  शिलाजीत का सेवन करने से तनाव को पैदा करने वाले हार्मोन्स संतुलित हो जाते हैं जिससे इंसान को टेंशन की समस्या नहीं होती है।  ताकत   तुरंत उर्जा देता है शिलाजीत। इसमें अधिक मौजूद विटाम...

आयुर्वेदिक उपायों से वजन घटाएं,Lose weight with Ayurvedic remedies

  आयुर्वेदिक उपायों से वजन घटाएं – प्राकृतिक और स्वस्थ तरीके आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर आधारित है। वजन घटाने के लिए आयुर्वेद प्राकृतिक और सुरक्षित तरीके प्रदान करता है जो न केवल शरीर को स्वस्थ बनाते हैं बल्कि समग्र कल्याण में भी योगदान देते हैं। आइए जानते हैं वजन कम करने के कुछ आयुर्वेदिक उपाय। 1. आहार (Diet) पर नियंत्रण • आयुर्वेद के अनुसार, सही आहार वजन घटाने की कुंजी है। • नियमित रूप से गर्म पानी पिएं – गर्म पानी पीने से शरीर का मेटाबॉलिज्म तेज होता है और विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। • हल्का और संतुलित आहार लें – ताजा, मौसमी फल, सब्जियां, दलिया और जौ जैसे हल्के अनाज खाएं। तले हुए और भारी भोजन से बचें। • मसालों का प्रयोग बढ़ाएं – अदरक, काली मिर्च, हल्दी और दालचीनी जैसे मसाले शरीर की चयापचय दर (Metabolism) को बढ़ाते हैं और वजन घटाने में सहायक होते हैं। • शहद और नींबू पानी – हर सुबह गुनगुने पानी में शहद और नींबू मिलाकर पिएं। यह चर्बी को घटाने में मदद करता है। 2. व्यायाम और योग • आयुर्वेद में नियमित व्यायाम और योग को बहुत महत्...